उपवेद

उपवेद

हिन्दू धर्म में चार मुख्य वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्वेवेद हैं। इन वेदों से निकली हुई शाखाओं रूपी वेदज्ञान को उपवेद कहा जाता है। वैसे उपवेद के वर्गीकरण को लेकर विभिन्न विद्वानों के मत अलग-अलग हैं, लेकिन इनमें ये चार सबसे उपयुक्त हैं।

चार उपवेदों की बात करें तो इनमें शामिल है:

  • आयुर्वेद: धन्वंतरि ने इसे ऋग्वेद से इसे निकाला था।
  • धनुर्वेद: विश्वामित्र ने इसे यजुर्वेद से निकला था।
  • गंधर्ववेद: भरतमुनि ने इसे सामवेद से निकाला था।
  • स्थापत्यवेद (शिल्पवेद): विश्वकर्मा ने अथर्ववेद से इसे निकला था।

वैसे ऋग्वेद के उपवेद को लेकर थोड़ा मतांतर है, क्योंकि चरणव्यूह के अनुसार ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है जबकि सुश्रुत के अनुसार आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है।

विद्वानों में मतभेद

इस तथ्य के विषय में कौन उपवेद किस वेद के साथ यथार्थत: संबद्ध है, विद्वानों में ऐकमत्य नहीं है। मधुसूदन सरस्वती के ‘प्रस्थानभेद’ के अनुसार वेदों के समान ही उपवेद भी क्रमश: चार हैं- आयुर्वेद, धनुर्वेद, संगीतवेद तथा अर्थशास्त्र। इनमें आयुर्वेद ऋग्वेद का उपवेद माना जाता है, परंतु सुश्रुत इसे अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। आयुर्वेद के आठ स्थान माने जाते हैं- सूत्र, शारीर, ऐंद्रिय, चिकित्सा, निदान, विमान, विकल्प तथा सिद्धि एवं इसके प्रवक्ता आचार्यों में मुख्य हैं- ब्रह्म, प्रजापति, आश्विन्‌, धन्वंतरि, भरद्वाज, आत्रेय, अग्निवेश। आत्रेय द्वारा प्रतिपादित तथा उपदिष्ट, अग्निवेश द्वारा निर्मित संहिता को चरक ने प्रतिसंस्कृत किया। इसलिए ‘चरकसंहिता’ को दृढ़बल ने ‘अग्निवेशकृत’ तथा ‘चरक प्रतिसंस्कृत तंत्र’ अंगीकार किया है। चरक, सुश्रुत तथा वाग्भट आयुर्वेद के त्रिमुनि हैं। कामशास्त्र का अंतर्भाव आयुर्वेद के भीतर माना जाता है।