लिंग पुराण
वेदव्यास कृत लिंग पुराण अट्ठारह महापुराणों में से एक है। पवित्र अट्ठारह पुराणों में इस पुराण का स्थान ग्यारहवा है। लिंग पुराण में भगवान शिवजी के 12 ज्योर्तिलिंगों की कथा का वर्णन किया गया है। इस पुराण में ईशान कल्प के वृत्तान्त सर्वविसर्ग आदि का भी वर्णन मिलता है। लिंग पुराण में सबसे पहले योग और फिर कल्प के विषय में वर्णन किया गया है। यह पुराण अट्ठारह पुराणों में श्रेष्ठ पुराण है।
लिंग शब्द का अर्थ चिन्ह या प्रतीक है, यह महर्षि कणाद कृत वैशेषिक ग्रंथ में मिलता है। लिंग पुराण के अनुसार शिवलिंग भगवान शिवजी की ज्योतिरूपा शक्ति का चिन्ह है। इस पुराण में सृष्टि के कल्याण हेतु भगवान शिवजी ज्योर्ति लिंग द्वारा प्रकट होने वाली घटना का वर्णन है। लिंग पुराण में व्रत-योग शिवार्चन यज्ञ हवनादि का वर्णन प्राप्त होता है। लिंग पुराण शिव पुराण का पूरक ग्रन्थ है।
परिचय
वेदव्यास रचित भगवान शिवजी के लिंग पुराण में 163 अध्याय और 11,000 श्लोक है। इस पुराण में भगवान शिवजी की महिमा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। लिंग पुराण में भगवान शिवजी के 12 ज्योर्तिलिंगों की कथा का वर्णन और ईशान कल्प के वृत्तान्त सर्वविसर्ग आदि का वर्णन है।
लिंग पूजा की महिमा शिवपुराण, लिंग पुराण, स्कन्दपुराण, मत्स्य पुराण और कूर्म पुराण यह सभी पुराणों में है। लिंग पुराण में प्रधान प्रकृति को ही लिंग स्वरुप में बताया गया है।
प्रधानं प्रकृतिश्चैति यदाहुर्लिंगयुत्तमम्।
गन्धवर्णरसैर्हीनं शब्द स्पर्शादिवर्जितम्॥
भावार्थ: प्रधान प्रकृति उत्तम लिंग कही गई है जो गन्ध, वर्ण, रस, शब्द और स्पर्श से तटस्थ या वर्जित है।
लिंग पुराण की कथा
लिंग पुराण की कथा शिव पुराण की कथा एक समान ही है। लिंग पुराण अत्यन्त सरल, सहज, व्यापक और सम्पूर्ण वर्णन मिलता हे, ऐसा किसी अन्य पुराण में नहीं है। लिंग पुराण में भगवान शिवजी के ज्योर्तिलिंगों के प्रादुर्भाव होने की कथा है। लोक कल्याण के लिए ईशान कल्प का वृतांत, सम्पूर्ण सर्ग, विसर्ग आदि लक्षणों से सम्मिलित है।
महर्षि वेदव्यास रचित लिंग पुराण में सबसे पहले योग आख्यान और कल्प आख्यान का वर्णन मिलता है। फिर लिंग की पूजा और प्रादुर्भाव का वर्णन, सनत्कुमार और शैलादी के संवाद का वर्णन, दधीचि का चरित्र और युग धर्म का वर्णन मिलता है।
लिंग पुराण में लिंग प्रतिष्ठा का वर्णन, काशी एवं श्री शैल का वर्णन, अंधकासुर की कथा का वर्णन, जलंधर वध का वर्णनं, शिव तांडव का वर्णन, कामदेव दहन और भगवान शिवजी के हजार नाम मिलते है।
साक्षात शिव का वास लिंग पुराण में है। लिंग पुराण श्रवण करने मात्र से मनुष्य के समस्त पापो का नाश हो जाता है। कल्याण कारी पवित्र लिंग पुराण जीव का कल्याण और जीव को शिवमय बनाता है। यह पुराण सुनने से मनुष्य को मृत्यु के समय कष्ट नहीं होता और शरीर का त्याग करने के बाद शिव लोक प्राप्त होता है।
एकेनैव हृतं विश्वं व्याप्त त्वेवं शिवेन तु।
अलिंग चैव लिंगं च लिंगालिंगानि मूर्तय:॥
भावार्थ: शिव के तीन रूपों में से एक के द्वारा सृष्टि (विश्व) का संहार हुआ और उस शिव के द्वारा ही यह व्याप्त है। उस शिव की अलिंग, लिंग और लिगांलिंग तीन मूर्तियां हैं।