नारद पुराण

नारद पुराण

स्वयं अपने मुख से महर्षि नारद ने कहा गया यह नारद पुराण अट्ठारह पुराणों में से एक पुराण है। नारद पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा जाता है। महर्षि व्यास द्वारा रचित 18 पुराणों में से एक है। नारद पुराण में भगवान विष्णु की उपासना का विस्तृत वर्णन कहा गया है। इस पुराण में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, तथा गणित, और छन्द-शास्त्रों का वर्णन भी मिलता है। नारद पुराण एक ही ऐसा पुराण हे जिसमे 18 पुराणों की अनुक्रमणिका मिलती है।

परिचय

नारद पुराण में 207 अध्याय और 22,000 श्लोक मिलते है। देवर्षि नारद ने स्वयं ब्रह्मा के चार शानदार मानसिक पुत्रों के महर्षि सनक को सुनाया था। सनक, सानंदन, सनातन और सनत कुमार। यह बात महा मुनि सूत ने ‘नैमिषारण्य’ में सौनाक के नेतृत्व में छब्बीस हजार मुनियों की एक विशाल सभा में कही। नारद पुराण दो भागो में विभाजित हे, पहला भाग पूर्वा भाग और दूसरा भाग ‘उत्तरा भाग है।

पूर्व भाग

नारद पुराण के इस भाग में 125 अध्याय हैं। नारद पुराण के इस भाग में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, मंत्रों का अनुप्रयोग, अनुष्ठानों और व्रतों के माध्यम से पूजा का विस्तृत वर्णन करने वाले चार अध्याय मिलते हैं। अठारह पुराणों की अनुक्रमणिका और पुराणों के श्लोक की संख्या का उल्लेख भी इस भाग में है। इस भाग में ज्ञान के विविध सोपानों का वर्णन मिलता है। नारद पुराण के इस भाग में ऐतिहासिक गाथाएं, गोपनीय धार्मिक अनुष्ठान, धर्म का स्वरूप, भक्ति का महत्त्व दर्शाने वाली विचित्र और विलक्षण कथाएं, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष, मन्त्र विज्ञान, बारह महीनों की व्रत-तिथियों के साथ जुड़ी कथा अदि इसमें मिलता है।

उत्तर भाग

नारद पुराण के इस भाग में 82 अध्याय है। इस भाग में वेदों के छह अंगों में विभाजित किया गया है। यह अंग हैं, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद और ज्योतिष।

शिक्षा

इसमें मुख्य रूप से स्वर, वर्ण आदि के उच्चारण की विधि का अनुसंधान है। श्लोक की तान, राग, स्वर और मूर्च्छता आदि के लक्षण, मंत्रो के ऋषि, छंद एवं देवताओं का परिचय और गणेश पूजा का विधि-विधान वर्णन इसमें मिलता है।

कल्प

कल्प में हवन, यज्ञ, अनुष्ठानों अदि के विषय के बारे में बताया गया है। इसमें काल गणना का वर्णन भी मिलता है। चौदह मन्वन्तर का एक काल, ब्रह्मा का एक दिन कहलाता है, इसे काल गणना कहते है।

व्याकरण

व्याकरण में शब्दों के रूप, उनकी सिद्धि आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है।

निरुक्त

निरुक्त में शब्दों के चुनाव पर विचार किया जाता है। शब्दों के रूढ़ यौगिक और योगारूढ़ स्वरूप का विस्तार से समझाया गया है।

ज्योतिष

ज्योतिष में गणित भाग, जातक अर्थात् होरा स्कंध अथवा ग्रह-नक्षत्रों का फल, ग्रहों की गति, सूर्य संक्रमण आदि विषयों का ज्ञान बहोत ही अछि तरीके से समझाया गया है।

छंद

छंद में वैदिक और लौकिक छंद के लक्षण आदि का वर्णन मिलता है। इन छन्दों को वेदों का चरण माना जाता है, क्योंकि इसके बिना वेदों की कोई गति नहीं है। वैदिक छन्दों में गायत्री, शम्बरी और अतिशम्बरी आदि भेद होते हैं, जबकि लौकिक छन्दों में ‘मात्रिक’ और ‘वार्णिक’ भेद होते हैं।

नारद पुराण में शिव और काली की पूजा के मंत्र भी मिलते है। इस पुराण में विष्णु की पूजा के साथ राम की पूजा का भी विधान मिलता है। फिर भी यह पुराण वैष्णव पुराण ही कहा जाता है। नारद पुराण का पाठ ऐसे लोगो के सामने नहीं करना चाहिए, जिस मनुष्य ने गोहत्या और देव निन्दा की हुई है। क्योकि नारद पुराण में अन्त में गोहत्या और देव निन्दा को महा पाप माना जाता है।

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