श्रीमद्भगवद् गीता
हिन्दू धर्म के पवित्रतम ग्रंथो में से एक श्रीमद्भगवद् गीता है। श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पहले भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था। श्रीमद्भगवद् गीता महाभारत के भीष्मपर्व के सम्मिलित उपनिषद् के रूप में दिया गया है। इस में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। भगवद गीता का ज्ञान तकरीबन 5560 वर्ष पहले दिया गया था। भगवद गीता की गणना उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र में शामिल है, जो हिन्दू धर्म की परंपरा में गीता का स्थान वही है, जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है। उपनिषद् को गाय और गीता को गाय दूध कहा गया है। उपनिषदों की अध्यात्म विद्या को भगवद गीता सर्वांश में स्वीकार करती है, और उपनिषदों की विद्याएँ गीता में भी हैं। अश्वत्थ विद्या, अव्ययपुरुष विद्या, अक्षरपुरुष विद्या और क्षरपुरुष विद्या भगवद गीता में है, जो उपनिषद् की विद्या है।
वास्तव में श्रीमद्भगवद् गीता का माहात्म्य वाणी द्वारा वर्णन करने के लिये किसी की भी योग्यता नहीं है, क्योंकि यह एक परम रहस्यमय ग्रन्थ है। इसमें सम्पूर्ण वेदों का सार, सार-संग्रह किया गया है। इसकी संस्कृत इतनी सुन्दर और सरल है कि थोड़ा अभ्यास करने से मनुष्य उसको सहज ही समझ सकता है, परन्तु इसका उद्देश्य इतना गम्भीर है, कि आजीवन नित्य अभ्यास करते रहने पर भी उसका अन्त नहीं आता। प्रतिदिन नये नये भाव उत्पन्न होते रहते हैं, इससे यह सदैव नवीन बना रहता है, एवं एकाग्रचित्त होकर श्रद्धा भक्ति सहित विचार करने से इसके पद-पद में परम रहस्य भरा हुआ प्रत्यक्ष ज्ञात होता है। भगवान के गुण, प्रभाव और मर्म का वर्णन जिस प्रकार इस गीता शास्त्र में किया गया है, वैसा अन्य ग्रन्थों में मिलना कठिन है; क्योंकि विशेषकर ग्रन्थों में कुछ न कुछ सांसारिक विषय मिलता रहता है। भगवान ने ‘श्रीमद्भगवद् गीता’ के रूप में एक ऐसा अद्भुत शास्त्र कहा है कि जिसमें एक भी शब्द सदुपदेश से खाली नहीं है। श्री वेदव्यास जी ने महाभारत में गीताजी का वर्णन करने के उपरान्त कहा है-
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्याद्विनिःसृता।
‘गीता सुगीता करने योग्य है अर्थात् श्री गीताजी को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भाव सहित अन्तःकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है, जो कि स्वयं पद्मनाभ भगवान् श्री विष्णु के मुखारविन्द से निकली हुई है। फिर अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है ?’ स्वयं श्री भगवान ने भी इसके माहात्म्य का वर्णन किया है (अध्याय 18 श्लोक 68 से 71 तक)।
परिचय
श्रीमद्भगवद् गीता हिन्दू धर्म का पवित्र ग्रंथ हे जो महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पहले भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता का सन्देश जो अर्जुन को सुनाया है। भागवत गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक सम्पूर्ण वेदो का सार वर्णित करते हैं। श्रीमद्भगवद् गीता को अर्जुन के अतिरिक्त संजय ने सुना और संजय ने धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में श्रीकृष्ण द्वारा 574 श्लोक बोले गए हे, अर्जुन द्वारा 85 श्लोक बोले गए है, संजय द्वारा 40 श्लोक बोले गए और धृतराष्ट्र द्वार 1 श्लोक बोला गया है। महाभारत का युद्ध गीता की पुष्टभूमि है। भगवद गीता में कर्म योग, ज्ञानयोग और भक्ति योग को भगवान कृष्ण द्वारा सरल भाषा में चर्चा की गई है।
गीता का सन्देश सार
श्रीमद्भगवद् गीता का ज्ञान सबसे पहले भगवान ने ज्ञान के प्रतिक सूर्यदेव को सुनाया था। भगवान का कहने का मतलब है, की पृथ्वी की उत्पत्ति होने से पहले ही गीता का ज्ञान दे चूका हूँ। भगवद गीता में सम्पूर्ण जीवन का सार है। मनुष्य के हृदय में कुतूहल सर्वदा घूमता रहता हैं की मैं कौन हूँ? यह शरीर क्या है? इस शरीर के साथ क्या मेरा आरंभ और अन्त है? शरीर के त्याग होने के बाद क्या मेरा अस्तित्व रहेगा? यह उपस्थिति कहाँ और किस रूप में होगा? मेरा इस संसार में आने की वजह क्या है? मेरे इस शरीर का त्याग करने के बाद क्या होगा, कहाँ जाना होगा? ही बात सोचकर हम अपने ही बारे मे नहीं जानते है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में धर्म संवाद के आधार से इन सरे प्रश्न के उत्तर सरलता से दिए गए है। इस शरीर में जीवात्मा की मौजूदगी के कारण 36 तत्व एकसाथ काम करते है, जीवात्मा का स्थान कहा है, और जीवात्मा किस स्थान में रहता है, जीवात्मा ही शरीर का मालिक है, परंतु एक तीसरा पुरुष भी है, जब तीसरा पुरुष प्रगट होता है तब 36 तत्व वाले इस शरीर को और जीवात्मा का भी नाश कर देता है। परम स्थिति और परम सत् ही उत्तम पुरुष है। एक शरीर को एत्यागकर जीवात्मा जाता है इस गति का वर्णन भगवद गीता में हुआ है। शरीर के मर ने के बाद जीवात्मा कर्मो के अधीन होता है, इसलिए जीवात्मा कर्मो के अनुसार अलग अलग योनियों में घूमता रहता है।
भगवद गीता का सारांश है बुद्धि को बारीकी से आत्मा में लगाए रखना चाहिए। कर्म सरल तरीके से करते रहने कहा है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में बार-बार यही कहा है की आत्मा को स्थिर रखे। स्वाभाविक कर्म करते हुए बुद्धि का निरपेक्ष होना सरल है, अतः इसे ही निश्चयात्मक मार्ग माना है। इसलिए ज्ञान योग, बुद्धि योग, कर्म योग, भक्ति योग आदि का भगवद गीता में उपदेश दिया गया है। इस पर विचार करते हे तो सभी योग बुद्धि से भगवान श्री कृष्ण को अर्पण करते है। इस कारण अनासक्त योग निष्काम कर्म योग स्वयम सिद्ध हो जाता है।
गीता जयंती
श्रीमद्भगवद् गीता कलियुग के प्रारंभ के मात्र तीस वर्ष पहले, मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन, कुरुक्षेत्र के मैदान में, अर्जुन के नन्दिघोष नामक रथ पर सारथी के स्थान पर बैठ कर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का सन्देश दिया था। इस तिथि को प्रतिवर्ष गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। माना जाता हैं की प्रथम दिन का उपदेश सुबह: 8 से 9 बजे के बीच हुआ था।
गीता के अन्य नाम
- अष्टावक्र गीता
- ज्ञानेश्वरी गीता
- अवधूत गीता
- कपिल गीता
- श्रीराम गीता
- श्रुति गीता
- उद्धव गीता
- वैष्णव गीता
- कृषि गीता
- गुरु गीता