भविष्य मालिका
भविष्य मालिका को संत श्री अच्युतानंद दास ने लिखा था। भविष्य मालिका में भविष्य मे घटने वाली सभी घटनाओं का उल्लेख मिलता है। यह ग्रंथ 600 वर्ष पूर्व 15वी और 16वी शताब्दी के बीच वैष्णव समुदाय मे अच्युतानंद महराज ने भविष्यवाणीयाँ करके एक ग्रंथ लिखा इसे आज हम भविष्य मालिका के नाम से जानते है। अच्युतानंद दास द्वारा रचित इस ग्रंथ में भविष्यवाणियाँ की गई है, जो ताड़ के पत्तो पर लिखी गई थी।
भविष्य मालिका की भविष्यवाणियाँ में कलयुग में भूचाल, अकाल, विस्फोट, युद्ध के साथ कई देशो के बारे में भविष्यवाणि की गई है। भविष्यवाणियां कब घटित होगी ऐसे संकेत भविष्य मालिका में दिए गए है। भविष्य मालिका में मूल जगन्नाथ मंदिर की भविष्वाणियों से घटित होने वाली घटनाओ के आधार पर विश्व की घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसमें कलयुग के अंत में घटने वाली घटनाओं का भी उल्लेख किया गया है।
भविष्य मालिका क्या है?
भविष्य मालिका ब्रम्हवाणी है जो स्वयं निराकार इस्वर की इच्छा से पंचसखावों ने लिखी है। इसका मुख्य उद्देश्य कलयुग के अंत मे महाविनाश से पहले भक्तों को सतर्क करना है। उन्हें सही मार्ग में लाना है। क्योंकि कलयुग के प्रभाव से भक्तों में भी बुराई होंगीं। लेकिन मालिका सुनते ही वे सतर्क हो जायेंगे।
वेदव्यास जी ने महाभारत होने से पहले महाभारत लिख दिया था, वाल्मीकि जी ने रामायण होने से पहले रामायण लिख दिया था। उसी तरह कली महाभारत और कलयुग के अंत के बारे में पंचसखावों ने 600 साल पहले लिख दिया है, इस ग्रन्थ को महागुप्त रखा गया था और कलयुग के अंत मे स्वयं प्रभु की इच्छा से इसका प्रकाश हो रहा है।
मालिका के माध्यम से ही प्रभु अपने सभी भक्तों को धरावतरण के बारे में बतायेंगे। मालिका से ही सभी भक्तों को पता चल सकेगा कि प्रभु आ गये है। मालिका को बाकी धर्मग्रंथों से तुलना करना गलत है। क्योंकि मालिका में सभी चीज़े पूरी डिटेल्स में लिखी है। जैसे विश्वयुद में कौन से देश किस देश से युद्ध करेंगे, सम्भलनगर कौन सा है, सतयुग कैसा होगा, यह खंड प्रलय कैसे होगा, और विनाश क्यों और कबतक होगा, प्रभु धर्मसंथापना कैसे करेंगे, किस देश का क्या होगा, किनको राजा बनाएंगे।
भविष्य मालिका की बात 100% सत्य है। यह स्वयं श्री जगन्नाथ जी की इच्छा से पंचसखाओ ने लिखा है। इसलिये इसके गलत होने का सवाल ही नहीं उठता। मालिका के सत्य होने की बात कहते हुए पंचसखाओ में श्रेष्ठ श्री अच्युतानन्द दास जी कहते है।