अद्भुत रामायण

अद्भुत रामायण

वाल्मीकि कृत आदि रामायण के प्रभाव से धीरे-धीरे राम-कथा अधिक व्यापक एवं लोकप्रिय बनने लगी। विष्णु के अवतार के रूप में राम की प्रतिष्ठा होने के बाद परवर्ती पुराण-उपपुराणों में विशेषकर स्कन्द- पुराण, पद्मपुराण तथा महाभागवतपुराण आदि ग्रन्थों में रामकथा विषयक सामग्री उत्तरोत्तर बढ़ने लगी । स्वतंत्र रूप से भी रामविषयक अनेक कृतियों की, साम्प्रदायिक रामायणों की रचना होने लगी। इस प्रकार के रामविषयक संस्कृत धार्मिक साहित्य में अध्यात्म रामायण, अद्भुत रामायण और आनन्द रामायण त्रिशेषरूप से उल्लेखनीय हैं।

अद्भुत रामायण अध्यात्म रामायण से अधिकांश प्रभावित जान पड़ती है। अध्यात्म रामायण में भगवान श्री राम के मूल स्वरूप का यथार्थ वर्णन किया गया है। अद्भुत रामायण में आदिशक्ति के रूप में माता सीता के मूल-स्वरूप का वर्णन पाया जाता है। इससे प्रतीत होता है कि अद्भुत रामायण की रचना अध्यात्म रामायण की रचना के कुछ काल बाद हुई होगी । रामचरितमानस (1532 से 1623 ई० स०) के प्रथम काण्ड में अद्भुत रामायण का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है। इस दृष्टि से माना जाता हैं कि 14वीं या 15वीं शताब्दी में उत्तर भारत में इस ग्रन्थ की रचना हुई होगी ।

अद्भुत रामायण की कई हस्तलिखित प्रतियाँ उपलब्ध हैं। किन्तु प्रकाशित संस्करण केवल दो हैं। (१) 1882 में बनारस से प्रकाशित एवं (२) दूसरा सन् 1958 में बम्बई वेंकटेश्वर प्रेस से प्रकाशित । ये दोनों ही संस्करण आज अप्राप्य हैं।

अद्भुत रामायण में कुल 27 सर्ग है, जिसमे कुल श्लोक संख्या 1353 विभाजित इस छोटी- सी कृति वाल्मीकि-भरद्वाज-संवाद के रूप में प्रस्तुत की गई है। प्रस्तुत कृति में माता सीता के अद्भुत स्वरूप एवं पराक्रमों का वर्णन किया गया है, इस दृष्टि से इसका ‘अद्भुत रामायण’ यह शीर्षक यथार्थ जान पड़ता है। विकट रूप धारण करके सीता सहस्रवदन रावण का वध करती हैं, तब श्री राम साक्षात् शक्तिस्वरूपिणी माता सीता की ‘सहस्रनाम’ से स्तुति करते हैं। ललिता सहस्रनाम स्तोत्र से इस स्तोत्र की तुलना की जा सकती है। कहा गया है कि ‘अद्भुत स्तोत्र’ के नाम से निर्दिष्ट इस स्तोत्र का जो कोई पाठ करता है या कराता है उसे परमपद को प्राप्ति होती है।

अद्भुत रामायण की कथावस्तु तीन विभागों में विभाजित की जा सकती है। प्रथम सर्ग में पूर्वभूमिका प्रस्तुत की गई है। और सर्ग 2 से 8 तक श्री राम और माता सीता के जन्म के कारण बताये गये हैं। नारद एवं पर्वत के शाप के कारण विष्णु को राम-रूप में अवतार लेना पड़ता है। सीता- जन्म के कारण के रूप में एक नई कथा दी गई है। स्वर्ग में अपमानित होने से नारद लक्ष्मी को शाप देते हैं, जिसके कारण वह मन्दोदरी की पुत्त्री के रूप में पृथ्वी पर जन्म धारण करती है। मूल शिव-पुराण में वर्णित नारद-शाप की यह कथा अद्भुत रामायण एवं रामचरितमानस दोनों ग्रन्थों में प्राप्त होती है, किन्तु रामचरितमानस की कथा शिव पुराण की कथा से अधिक साम्य रखती है।

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