अष्टावक्र गीता
अष्टावक्र गीता भारतीय अध्यात्म का शिरोमणि ग्रंथ है, जिसकी तुलना अन्य किसी ग्रंथ से नहीं की जा सकती। इसका प्रत्येक सूत्र आपके जन्म-जन्मांतरों की गुत्थियों को इस प्रकार सुलझा देगा, मानो वे कभी थी ही नहीं। श्रीमद्भगवद्गीता की भांति इसमें भी गुरु-शिष्य के बीच हुआ संवाद है, किंतु दोनों के संदों में अंतर है। जहां अर्जुन के प्रश्न ‘कर्त्तव्य’ को लेकर हैं, वहीं अष्टावक्र गीता में तत्त्वज्ञान व मोक्ष के विषय में पूछा गया है।
सुख कहां है?, दुखों का कारण क्या है?, बंधन क्या है?, मुक्ति क्या है?, संसार क्या है?, मैं कौन हूं? जीवन के ऐसे ही अनेक गूढ़ प्रश्नों का उत्तर प्रदान करनेवाला एक परम पावन ग्रंथ अष्टावक्र गीता है, जिसमें गुरु अष्टावक्र ने बिना किसी लाग-लपेट के राजा जनक को तत्त्वज्ञान दिया है।
अष्टावक्र गीता, अष्टावक्र ऋषि द्वारा हमें दी गई सबसे प्राचीन शास्त्रीय आध्यात्मिक ग्रंथ में से एक है, जो अत्यधिक तीव्रता, शक्ति और पवित्रता का एक मौलिक ग्रंथ है। इस आध्यात्मिक अष्टावक्र गीता का हर शब्द पाठक पर गहरा प्रभाव डालने में सक्षम है। शब्दों में इतनी शक्ति भरी हुई है कि पाठक स्वतः ही आत्म-जांच के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित हो जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में जहां श्रीकृष्ण के उपदेशों को सुन अर्जुन को कर्म की रीति का बोध तो हुआ, लेकिन वह हर्ष-विषाद में चढ़ता-उतराता रहा। जबकि यहां अष्टावक्र के उपदेशों को सुनकर राजा जनक विदेह हो गए।
परिचय
अष्टावक्र गीता एक प्राचीन भारतीय ग्रंथ है जो वेदांत के अद्वैत (अद्वैतवाद) के सिद्धांतों पर आधारित है। यह संवाद राजा जनक और ऋषि अष्टावक्र के बीच का एक संक्षिप्त और अत्यंत गूढ़ संवाद है। इस ग्रंथ का प्रमुख उद्देश्य आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर प्रकाश डालना है।
अष्टावक्र गीता 20 अध्यायों में विभाजित है, और इसमें कुल 298 श्लोक हैं। प्रत्येक अध्याय आत्मज्ञान और मुक्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम की व्याख्या करता है।
अष्टावक्र गीता एक अनूठा संवाद है। आध्यात्मिक साधना के जगत में संवाद तो बहुत हुए लेकिन यह संवाद सर्वथा बेमिसाल है। यह संवाद कहोड ऋषि के पुत्र अष्टावक्र और राजा जनक के बीच घटित हुआ। अष्टावक्र के स्थूल शरीर के आठ अंग टेढ़े थे, इसलिए वे अष्टावक्र कहलाए।
सारांश
अष्टावक्र गीता एक प्रेरणादायक ग्रंथ है, जो व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है। यह सिखाता है कि आत्मा की वास्तविक प्रकृति को समझने से ही सच्ची मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। अष्टावक्र गीता की सरल और गूढ़ शिक्षाएँ आज भी अध्ययन और अनुसरण करने योग्य हैं, क्योंकि यह आत्मज्ञान के शाश्वत सत्य को प्रकट करती है।
इस ग्रंथ का अध्ययन व्यक्ति को जीवन और मृत्यु के बंधनों से मुक्त करने का मार्ग दिखाता है, और उसे शाश्वत शांति और आनंद की ओर ले जाता है।