ब्रह्मवैवर्त पुराण

ब्रह्मवैवर्त पुराण

हिन्दू धर्म के 18 पुराणों में से एक पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण है, यह पुराण वेदमार्ग का दसवाँ पुराण है। ब्रह्मवैवर्त पुराण को प्राचीनतम पुराण माना गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में समस्त भू-मंडल, जल-मंडल और वायु-मंडल के सभी जीवो के जन्म-मरण और पालन पोषण का वर्णन किया गया है। इस पुराण में भगवान श्री कृष्ण और राधाजी गोलोक-लीला का वर्णन और भगवान श्री राम और माता सीता का साकेत-लीला की लीलाओ का वर्णन मिलता है। इस पुराण में अनेक देवी-देवताओ की महिमा का वर्णन और अनेक भक्तिपरक आख्यानों का अद्भुत संग्रह मिलता है।

परिचय

महर्षि व्यासजी रचित ब्रह्मवैवर्त पुराण में 4 खण्ड, 218 अध्याय और 18,000 श्लोक है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में ब्रह्म खण्ड, प्रकृति खण्ड, गणपति खण्ड और श्रीकृष्ण जन्म खण्ड में विभाजित किया गया है।

ब्रह्म खण्ड:

ब्रह्मवैवर्त पुराण के इस खण्ड में भगवान श्री कृष्ण की विविध लीलाओ का वर्णन, सृष्टि क्रम का वर्णन और ‘आयुर्वेद संहिता’ का वर्णन कहा गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के इस खण्ड में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में राधा का आविर्भाव उनके वाम अंग से दिखाया गया है।

प्रकृति खण्ड:

ब्रह्मवैवर्त पुराण के इस खण्ड में सभी देवीओ आविर्भाव, चरित्रों और उनकी शक्तियों का सम्पूर्ण वर्णन मिलता है। खण्ड की शरुआत यशदुर्गा, महालक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री और सावित्री के वर्णन से होती है। यह पांच देवी को पंचदेवीरूपा प्रकृति’ के नाम से जाना जाता है। यह अपने सभी भक्तो की रक्षा करने के लिए रूप धारण करती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सर्वोपरि रासेश्वरी रूप राधा का है।

राधा-कृष्ण की पूजा करने का परिचय इस खण्ड में संक्षिप्त रूप सेदिया गया है। सभी देवियों के विभिन्न नामों का उल्लेख इस खण्ड में मिलता है।

गणपति खण्ड:

ब्रह्मवैवर्त पुराण के गणपति खण्ड में भगवान श्री गणेशजी के जन्म की कथा, पुण्यक व्रत की महिमा, गणेश जी के चरित्र और लीलाओं का वर्णन कहा गया है। इस खण्ड में भगवान गणेशजी के 8 विघ्ननाशक नामो की सूची दी गई हे जो इस प्रकार हे, विघ्नेश, गणेश, हेरम्ब, गजानन, लंबोदर, एकदंत, शूर्पकर्ण और विनायक।

गणपति खण्ड के अन्त में कहा हे की गणेश जी को तुलसी दल अर्पित नहीं करना चाहिए। इस खण्ड में ‘दशाक्षरी विद्या’ , ‘काली कवच’ और ‘दुर्गा कवच, ‘सूर्य कवच’ तथा ‘सूर्य स्तोत्र’ का वर्णन है।

श्रीकृष्ण जन्म खण्ड:

ब्रह्मवैवर्त पुराण का अंतिम खंड श्रीकृष्ण जन्म खण्ड सबसे बड़ा खण्ड हे, जिसमे 100 अध्याय है। इस खण्ड में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओ का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। इस खण्ड में दैहिक, दैविक तथा भौतिक भयों का नाश करने वाला ‘श्रीकृष्ण कवच का उल्लेख किया गया है। जिस का पाठ करने से समस्त भयों का नाश हो जाता है।

इस खण्ड में भगवान श्रीकृष्ण के 33 नाम, बलरामजी के 9 नाम और राधाजी के 16 नामो का वर्णन मिलता है। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस खण्ड में सौ के लगभग उन वस्तुओं, द्रव्यों और अनुष्ठानों की सूची दी गई है।

इस खण्ड में विभिन्न तीर्थों में स्नान करने और पुण्य लाभ पाने के लिए तिथि विशेष का उल्लेख मिलता है। इस खण्ड में राधा जी की पूजा-अर्चना करने के लिए ‘कार्तिक पूर्णिमा विशेष फलदायी कहा गया है।

महत्त्व:

ब्रह्मवैवर्त पुराण में जिनकी इच्छा से सृष्टि का जन्म हुआ हे वह भगवान श्री कृष्ण ही परब्रह्म कहा गया है।

इस पुराण का आध्यात्मिक महत्त्व और वैज्ञानिक महत्त्व है। इस पुराण में ब्रह्माजी के द्वारा इस सृष्टि के समस्त भू-मंडल, जल-मंडल और वायु-मंडल में विचरण करने वाले सभी जीवों के जन्म और उन जीवो के पालन पोषण का वर्णन किया गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टि में असंख्य ब्रह्माण्ड है। वैज्ञानिक भी इस बात का समर्थन करता है।

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