केनोपनिषद
केनोपनिषद सामवेदिय शाखा का उपनिषद है। केनोपनिषद संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इसके रचियता वैदिक काल के ऋषि-मुनियो को माना जाता है, परन्तु मुख्यत महर्षि वेदव्यास ऋषि को उपनिषदों का लेखक माना जाता है। 10 मुख्य उपनिषदों में केनोपनिषद द्रितीय क्रम का उपनिषद है।
केनोपनिषद का शाब्दिक अर्थ केन अर्थात किसके द्वारा का विवेचन होने से केनोपनिषद कहा जाता है। यह उपनिषद की शुरुआत प्रश्न (जीवन किसके द्वारा प्रेरित है) से होने से इस उपनिषद को केनोपनिषद के नाम से भी जानते है।
केनोपनिषद में सर्वप्रेरक परब्रह्म का महिमा का वर्णन और परब्रह्म स्वरुप का बोध कहते हुए स्पस्ट कहा हे की –
कहने और सुनने में ब्रह्म जितना सरल हे, संवेदना में उतना ही कठिन भी है।
परिचय
केनोपनिषद सामवेद के तलवकार ब्राह्मण के 9वीं अध्याय में मिलता है। केनोपनिषद 4 खंडो में विभाजित है। प्रथम और द्वितीय खंड में गुरु और शिष्य की प्रथा द्वारा प्रेरक सत्ता का वर्णन किया गया है। तीसरे और चौथे खंड में देवताओं में घमंड और “ब्रह्म तत्व’ ज्ञान का सम्पूर्ण वर्णन किया गया है। केनोपनिषद सभी प्राणी को ”श्रेय” मार्ग की ओर प्रचालित करना इस उपनिषद का लक्ष्य है।
केनोपनिषद एक वैदिक उपनिषद जो वेदों के तन्हावली श्रृंखला में शामिल है। यह महत्वपूर्ण प्राचीन भारतीय धर्म, वेदान्त और तन्त्र के प्रतिनिधित्व करता है।
केनोपनिषद में ब्रह्म, अत्यन्तता, अनन्तता, सत्य, अधिकार और अध्यात्मिक ज्ञान के विषयों पर चर्चा की जाती है।
केनोपनिषद का महत्त्व
केनोपनिषद का विशेष महत्त्व तो इसीसे प्रकट होता है कि भगवान् भाष्यकारने इस पर दो भाष्य रचे है । एक ही ग्रन्थपर एक ही । सिद्धान्त की स्थापना करते हुए एक ही ग्रन्थकार द्वारा दो टीकाएँ लिखी गयी हो ऐसा प्रायः देखा नहीं जाता।
केनोपनिषद इत्यादि सामवेदीय शाखान्तर्गत ब्राह्मणोपनिपद् की पदशः व्याख्या करके भी भगवान् भाष्यकार सन्तुष्ट नहीं हुए, क्योकि उसमे उसके अर्थ का शारीरकशास्त्रानुकूल युक्तियो से निर्णय नहीं किया गया ‘था, अतः अब श्रुत्यर्थका निरूपण करनेवाले न्यायप्रधान वाक्यों से व्याख्या करने की इच्छासे आरम्भ करते है।