मनुस्मृति

मनुस्मृति

मनुस्मृति हिन्दू धर्म व मानवजाति का एक प्राचीन धर्मशास्त्र व प्रथम विधान (स्मृति) है। यह 1776 में अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले पहले संस्कृत ग्रंथों में से एक था, ब्रिटिश फिलॉजिस्ट सर विलियम जोंस द्वारा, और ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के लाभ के लिए हिंदू कानून का निर्माण करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं जिनमें 2684 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 है।

इसकी गणना विश्व के ऐसे ग्रन्थों में की जाती है, जिनसे मानव ने वैयक्तिक आचरण और समाज रचना के लिए प्रेरणा प्राप्त की है। इसमें प्रश्न केवल धार्मिक आस्था या विश्वास का नहीं है। मानव जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति, किसी भी प्रकार आपसी सहयोग तथा सुरुचिपूर्ण ढंग से हो सके, यह अपेक्षा और आकांक्षा प्रत्येक सामाजिक व्यक्ति में होती है। विदेशों में इस विषय पर पर्याप्त खोज हुई है, तुलनात्मक अध्ययन हुआ है और समालोचनाएँ भी हुई हैं। हिन्दु समाज में तो इसका स्थान वेदत्रयी के उपरान्त हैं। मनुस्मृति की पचासों पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुईं हैं। कालान्तर में बहुत से प्रक्षेप भी स्वाभाविक हैं। साधारण व्यक्ति के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह बाद में सम्मिलित हुए अंशों की पहचान कर सके। कोई अधिकारी विद्वान ही तुलनात्मक अध्ययन के उपरान्त ऐसा कर सकता है।

भारत से बाहर प्रभाव

एन्टॉनी रीड कहते हैं कि बर्मा, थाइलैण्ड, कम्बोडिया, जावा-बाली आदि में धर्मशास्त्रों और प्रमुखतः मनुस्मृति, का बड़ा आदर था। इन देशों में इन ग्रन्थों को प्राकृतिक नियम देने वाला ग्रन्थ माना जाता था और राजाओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे इनके अनुसार आचरण करेंगे। इन ग्रन्थों का प्रतिलिपिकरण किया गया, अनुवाद किया गया और स्थानीय कानूनों में इनको सम्मिलित कर लिया गया।

मनुस्मृति के काल

चीन से प्राप्त पुरातात्विक प्रमाण के अनुसार मनुस्मृति कम से कम १०,२२० ईसा पूर्व प्राचीनतम सिद्ध हुई है।

विद्वानों के अनुसार मनु परम्परा की प्राचीनता होने पर भी वर्तमान मनुस्मृति ईसापूर्व चतुर्थ शताब्दी से प्राचीन नहीं हो सकती (यह बात दूसरी है कि इसमें प्राचीनतर काल के अनेक वचन संगृहीत हुए हैं), यह बात यवन, शक, कंबोज, चीन आदि जातियों के निर्देश से ज्ञात होती है। यह भी निश्चित हे कि स्मृति का वर्तमान रूप द्वितीय शती ईसा पूर्व तक दृढ़ हो गया था और इस काल के बाद इसमें कोई संस्कार नहीं किया गया।

मनुस्मृति की संरचना एवं विषयवस्तु

मनुस्मृति भारतीय आचार-संहिता का विश्वकोश है, मनुस्मृति में बारह अध्याय तथा दो हजार पाँच सौ श्लोक हैं, जिनमें सृष्टि की उत्पत्ति, संस्कार, नित्य और नैमित्तिक कर्म, आश्रमधर्म, वर्णधर्म, राजधर्म व प्रायश्चित आदि विषयों का उल्लेख है।

(१) जगत् की उत्पत्ति

(२) संस्कारविधि, व्रतचर्या, उपचार

(३) स्नान, दाराघिगमन, विवाहलक्षण, महायज्ञ, श्राद्धकल्प

(४) वृत्तिलक्षण, स्नातक व्रत

(५) भक्ष्याभक्ष्य, शौच, अशुद्धि, स्त्रीधर्म

(६) गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थ, मोक्ष, संन्यास

(७) राजधर्म

(८) कार्यविनिर्णय, साक्षिप्रश्नविधान

(९) स्त्रीपुंसधर्म, विभाग धर्म, धूत, कंटकशोधन, वैश्यशूद्रोपचार

(१०) संकीर्णजाति, आपद्धर्म

(११) प्रायश्चित्त

(१२) संसारगति, कर्म, कर्मगुणदोष, देशजाति, कुलधर्म, निश्रेयस।

यह भी पढ़े