पुराण किसे कहते हैं: पुराण हमारे सनातन धर्म की धरोहर है जिसके अंतर्गत संपूर्ण सृष्टि का ज्ञान विज्ञान उपलब्ध है। पुराण भारतीय संस्कृति की जान है इनका प्राचीन ग्रन्थों में महत्वपूर्ण स्थान है।
पुराण, सनातन धर्म से संबंधित आख्यान ग्रन्थ है और यह सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ है जिसमें सृष्टि व ब्रम्हांड से संबंधित विज्ञान, भूगोल व देवी देवताओं, ऋषि मुनियों के आख्यान है और साथ ही साथ समस्त राजाओं के वंशावली का भी उल्लेख है।
यद्यपि आजकल जो पुराण मिलते हैं उनमें से अधिकतर पीछे से बने हुए या प्रक्षिप्त विषयों से भरे हुए हैं तथापि पुराण बहुत प्राचीन काल से प्रचलित थे। बृहदारण्यक उपनिषद् और शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि गीली लकड़ी से जैसे धुआँ अलग अलग निकलता है वैसे ही महान भूत के निःश्वास से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वांगिरस, इतिहास, पुराणविद्या, उपनिषद, श्लोक, सूत्र, व्याख्यान और अनुव्याख्यान हुए। छान्दोग्य उपनिषद् में भी लिखा है कि इतिहास पुराण वेदों में पाँचवाँ वेद है। अत्यंत प्राचीन काल में वेदों के साथ पुराण भी प्रचलित थे जो यज्ञ आदि के अवसरों पर कहे जाते थे। कई बातें जो पुराण के लक्षणों में हैं, वेदों में भी हैं। जैसे, पहले असत् था और कुछ नहीं था यह सर्ग या सृष्टितत्व है; देवासुर संग्राम, उर्वशी पुरूरवा संवाद इतिहास है। महाभारत के आदि पर्व में (१.२३३) भी अनेक राजाओं के नाम और कुछ विषय गिनाकर कहा गया है कि इनके वृत्तांत विद्वान सत्कवियों द्वारा पुराण में कहे गए हैं। इससे कहा जा सकता है कि महाभारत के रचनाकाल में भी पुराण थे। मनुस्मृति में भी लिखा है कि पितृकार्यों में वेद, धर्मशास्त्र, इतिहास, पुराण आदि सुनाने चाहिए।
अब प्रश्न यह होता है कि पुराण हैं किसके बनाए। शिवपुराण के अंतर्गत रेवा माहात्म्य में लिखा है कि अठारहों पुराणों के वक्ता सत्यवतीसुत व्यास हैं। यही बात जन साधारण में प्रचलित है। पर मत्स्यपुराण में स्पष्ट लिखा है कि पहले पुराण एक ही था, उसी से १८ पुराण हुए (५३.४)। ब्रह्मांड पुराण में लिखा है कि वेदव्यास ने एक पुराणसंहिता का संकलन किया था। इसके आगे की बात का पता विष्णु पुराण से लगता है। उसमें लिखा है कि व्यास का एक ‘लोमहर्षण’ नाम का शिष्य था जो सूति जाति का था। व्यास जी ने अपनी पुराण संहिता उसी के हाथ में दी। लोमहर्षण के छह शिष्य थे— सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सावर्णी। इनमें से अकृतव्रण, सावर्णी और शांशपायन ने लोमहर्षण से पढ़ी हुई पुराणसंहिता के आधार पर और एक एक संहिता बनाई। वेदव्यास ने जिस प्रकार मंत्रों का संग्रहकर उन का संहिताओं में विभाग किया उसी प्रकार पुराण के नाम से चले आते हुए वृत्तों का संग्रह कर पुराणसंहिता का संकलन किया। उसी एक संहिता को लेकर सुत के चेलों के तीन और संहीताएँ बनाई। इन्हीं संहिताओं के आधार पर अठारह पुराण बने होंगे।
पुराण क्या है?
समस्त पुराणों का संकलन महर्षि वेदव्यास जी द्वारा संस्कृति भाषा में किया गया हैं। पुराण का शाब्दिक अर्थ पुरानी अर्थात प्राचीन से है। अथर्ववेद में कुल 4 वेदों का वर्णन है जिसके बाद पुराणों का उल्लेख होता है। वेदों की भाषा शैली कठिन है अतः पुराणो में वेदों की बातो को सरल भाषा में कथा के आधार पर बताया गया है।
पुराणों में सृष्टि के सृजन से उसके अंत तक का वर्णन है। पुराण मनुष्य का जीवन परिवर्तित कर सकती है क्योंकि इसमें भूत, भविष्य, वर्तमान दिखता है। यह मानव के लिए एक दर्पण का कार्य करती हैं जिसकी सहायता से मनुष्य अपने अतीत से सीखकर अपने वर्तमान में अच्छे कार्य कर सकता है जिससे भविष्य उज्जवल हो जाता है।
पुराण किसे कहते हैं?
पुराण दो शब्दो से मिल कर बना है पूरा+अण, जिसमें पूरा का अर्थ ‘पुरानी’ अथवा ‘प्राचीन या अतीत’ है तथा दूसरे शब्द “अण” का अर्थ है ‘कथा बतलाना’। अतः इस प्रकार पुराण का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘प्राचीन कथा बतलाना’।
पुराण किसे कहते हैं: हिन्दू धर्म के वे सभी विशेष धर्मग्रंथ जिनमें सृष्टि के सृजन से लेकर प्रलय तक के समस्त इतिहासों का वर्णन शब्दो के रूप में किया गया है उसे हैं पुराण कहते है। पुराण शब्दो का उल्लेख वैदिक काल के वेदों के साथ आदितम साहित्य में भी है। अतः पुराण सबसे पुरातन धर्मग्रंथ है।
पुराण का महत्व व लक्षण
हिन्दू धर्म में बात करे पुराण की तो इसका बहुत बड़ा महत्व है जो मनुष्य के जीवन जीने से लेकर हर प्रकार की समस्याओं का निवारण इसमें उपलब्ध है। सनातन धर्म में कुल 18 पुराण है और हर एक पुराण का अपना महत्व है। इन पुराणों में संपूर्ण धर्म के नीति, नियम, अनुशासन, कथा कहानियां, व ज्ञान के बारे में वर्णन है।
इसमें वैदिक काल के समस्त राजाओं, ऋषि मुनियों से संबंधित कथा कहानियां मौजूद है को मनुष्य को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करती है। इतना समझिए की पूरे संसार के सृजन से लेकर प्रलय तक की बाते इन पुराणों में उपलब्ध है।
सृष्टि के सृजन से पूर्व सब कुछ कैसा था और कैसे भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की? कैसे जीवन का उदय हुआ? ब्रह्माण्ड क्या है और यह कैसे बना सब कुछ A to Z समस्त वैदिक इतिहास इसमें उपलब्ध है।
प्राचीन पुराण में कुल पांच लक्षण पाए जाते है सृष्टि, प्रलय व पुनर्जन्म, चौदह मनु के काल, सूर्य चन्द्रादि वंशीय चरित आदि है।
पुराण कितने है पुराणों कि संख्या
हिन्दू धर्म में कुल 18 पुराण है जो भगवान ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी को समर्पित है। जो तीनों देवो में 6-6 पुराण करके विभक्त है। नारद पुराण के अनुसार पहले ये सभी 18 पुराण एक ही ग्रंथ में संकलित थे जिसमे कुल 100 करोड़ श्लोक उपलब्ध थे। मान्यता है कि इसका संकलन महर्षि वेदव्यास जी द्वारा संस्कृति भाषा में किया गया था।
यह ग्रंथ पहले इतना बड़ा था कि इसका पाठन व श्रावण साधारण प्राणी के लिए संभव न था अतः इसके समाधान हेतु भगवान विष्णु जी ने भगवान ब्रह्मा जी को महर्षि वेदव्यास जी के रूप में धरती पर अवतार लेने को कहा और पुराण को 18 भागो में विभक्त करने का कार्य सौंपा। और इस प्रकार ब्रह्मा जी महर्षि वेदव्यास के रूप में प्रकट होते है और पुराण को अलग अलग भागो में विभक्त करते है इस प्रकार 18 पुराणों का सृजन हुआ।
18 पुराणों के नाम और उनका महत्व
वेदव्यास जी के द्वारा कुल 18 पुराणों का सृजन (पुराण किसे कहते हैं) संस्कृति भाषा में किया गया था। इन पुराणों के संबंध में ब्रह्मा जी अपने पुत्र ऋषि मरीचि को उपदेश देते हुए बताया कि “जो कोई भी इन 18 पुराणों के नाम और उनकी विषय सूची को पढ़ता है या सुनता है तो उसको समस्त पुराणों के पाठ व श्रावण का फल प्राप्त होता है।”
नीचे हमने सभी 18 पुराणों के नाम व महत्व का संक्षिप्त वर्णन किया है।
1. ब्रह्मपुराण
- इसको आदिपुराण भी कहते है।
- इसमें श्लोकों की संख्या 12000 से 13000 के आसपास है।
- इसका प्रवचन नैमिषारण्य में लोमहर्षण ऋषि ने अपने श्री मुख से किया था।
- इसके अंदर सृष्टि व मनु की उत्पत्ति व उनके वंश के वर्णन के साथ साथ देवो और अन्य प्राणियों के उत्पत्ति का भी वर्णन है।
- इसमें कुछ महत्वपूर्ण तीर्थ स्थानों का वर्णन है जैसे उड़ीसा में स्थित कोणार्क मंदिर का वर्णन भी प्राप्त होता है।
- इसमें कुल 245 अध्याय है।
- इसमें एक परिशिष्ट सौर उपकरण है जिसके अन्तर्गत कोणार्क मंदिर का विस्तार से वर्णन है।
2. पद्म पुराण
- इसके अन्तर्गत कुल 641 अध्याय आते है जिसमें कुल श्लोकों की संख्या 49 हज़ार है श्लोकों की संख्या का उल्लेख मत्स्यपुराण में भी है।
- इसके अंदर कुल पांच खंड है, सृष्टि, भूमि, पाताल, स्वर्ग, और उत्तर खंड।
- इसका प्रवचन लोमहर्षण के पुत्र सूत उग्रश्रवा ने किया था।
- इस पुराण में विष्णु भगवान की भक्ति व पूजा विधि के बारे में भी वर्णन किया गया है।
3. विष्णु पुराण
- इसके अन्तर्गत पुराण के पांचों खंडो का समावेश है।
- इस पुराण में भगवान विष्णु जी को परम देव बताया गया है और उनसे संबंधित कथाओं का वर्णन किया गया है।
- इसमें कुल 126 अध्याय है और 26000 श्लोक है।
- इस पुराण के वाचक प्रवचन कर्ता पराशर ऋषि और श्रोता मैत्रेय है।
4. वायुपुराण
- इसमें शिव जी का विशेष वर्णन किया गया है।
- इसको शिव पुराण भी कहा जाता है किन्तु यह शिवपुराण से बिल्कुल अलग है।
- इसमें 112 अध्याय और कुल 11000 श्लोक उपलब्ध है।
- इसमें सृष्टिक्रम, भूगोल, खगोल, युगों, ऋषियों तथा राजवंशों, ऋषिवंशों, वेद, संगीतशास्त्र और शिवभक्ति का विस्तृत उल्लेख किया गया है।
- इसमें भी पुराण के पांच लक्षण उपलब्ध है।
5. भागवतपुराण
- भागवत पुराण सबसे अधिक प्रचलित और प्राचीन पुराण है।
- भगवतपुरण को सभी दर्शनों का सार और विद्वानों का परीक्षा स्थल भी माना गया है।
- इसमें कृष्ण भक्ति के बारे में बताया गया है।
- इसमें कुल 12 स्कंध और 335 अध्याय उपलब्ध है।
- इसमें कुल श्लोकों की संख्या 18000 है।
- इसको देविभगवत पुराण के नाम से भी कुछ विद्वान प्रवचन करते है क्योंकि इसमें देवी शक्ति का भी उल्लेख है।
- इसे महापुराण भी कहा जाता है।
- इसमें पुराणों के पांच लक्षण नहीं पाए जाते।
- नारद पुराण में वैष्णव व्रत व उत्सव का वर्णन किया गया है।
- इसमें कुल 207 अध्याय है जो दो खण्डों में विभक्त है।
- इसमें कुल 18000 श्लोक है।
- इसके विषय वस्तु मोक्ष, धर्म, नक्षत्र, एवं कल्प का निरूपण, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, गृहविचार, मन्त्रसिद्धि, वर्णाश्रम-धर्म, श्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि है जिनका वर्णन विस्तार से नारद पूर्ण में किया गया है।
- यह सबसे प्राचीनतम पुराण है जिनमें वैदिक देवताओं का वर्णन है।
- इसके प्रवचन कर्ता मार्कण्डय ऋषि और श्रोता क्रौष्टुकि शिष्य हैं।
- इसमें कुल 138 अध्याय और 7000 श्लोक है।
- इसमें गृहस्थ-धर्म, श्राद्ध, दिनचर्या, नित्यकर्म, व्रत व उत्सव, माता अनुसूया की पतिव्रत कथा, योग, दुर्गा-माहात्म्य आदि विषयों का वर्णन विस्तार से है।
8. अग्निपुराण
- इस पुराण के प्रवचन कर्ता अग्नि देव है और श्रोता वशिष्ठ जी है।
- इस पुराण के प्रवक्ता अग्निदेव है जिस कारण इस पुराण को अग्नि पुराण कहा जाता है।
- इसे संस्कृति और विधाओं का कोष माना गया है।
- इसमें कुल 363 अध्याय और 11500 श्लोक है।
- इसमें भगवान विष्णु जी के समस्त अवतारों का वर्णन किया गया है।
- इसके अतिरिक्त इसमें शिवलिंग, दुर्गा, गणेश, सूर्य, प्राणप्रतिष्ठा आदि का वर्णन मिलेगा।
- साथ ही आपको भूगोल, गणित, ज्योतिष, विवाह, मृत्यु, शकुनविद्या, वास्तु, दिनचर्या, नीतिशास्त्र, युद्धविद्या, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, काव्य, व्याकरण, कोशनिर्माण आदि नाना विषयों का वर्णन विस्तार से है।
9. भविष्यपुराण
- इसमें भविष्य की घटनाओं का वर्णन है।
- यह पुराण दो खण्ड में विभाजित है पूर्व खण्ड जिसके अंदर कुल 41 अध्याय है और दूसरा खण्ड है उत्तर खण्ड जिसमे 171 अध्याय है।
- इसमें कुल 15000 श्लोक हैं।
- इसमें कुल 5 पर्व है।
- इसमें ब्राह्मण धर्म, आचार, वर्णाश्रम-धर्म आदि विषयों का वर्णन है।
- यह पुराण एक वैष्णव पुराण है।
- इसमें कुल 18000 श्लोक है।
- इसमें श्री कृष्ण का चरित्र चित्रण किया गया है।
- इसको चार खण्ड में विभाजित किया गया हैं : ब्रह्म, प्रकृति, गणेश तथा श्रीकृष्ण-जन्म।
11. लिङ्गपुराण
- इस पुराण में भगवान शिव शंकर की उपासना का वर्णन है।
- इसमें शिव जी के 28 अवतारों की कथाओं का वर्णन किया गया है।
- इसमें कुल 163 अध्याय और 11000 श्लोक है।
- इसमें भी पुराणों के लक्षण नहीं मिलते है।
12. वराहपुराण
- इस पुराण में भगवान विष्णु जी के वराह अवतार से संबंधित वर्णन है।
- पाताल लोक व पृथ्वी लोक के उद्धार की कथा वराह ने इस पुराण में बताई है।
- इसमें कुल 217 अध्याय और 11000 श्लोक है।
13. स्कन्दपुराण
- यह पुराण सबसे बड़ा पुराण है इसमें भगवान शिव के पुत्रों का वर्णन है।
- इस पुराण में स्कन्द से तात्पर्य कार्तिकेय और सुब्रह्मण्य से है जो शिव जी के पुत्र है।
- इसमें कुल 81000 श्लोक और 20 अध्याय है जो दो खण्ड में विभाजित है।
- इसमें पुराण के पांच लक्षण नहीं मिलते है।
14. वामनपुराण
- इसमें 15 पुराण और 10000 श्लोक का वर्णन है।
- यह पुराण भगवान विष्णु जी के वामन अवतार से संबंधित है।
- इसमें कुल चार सहिंताए है।
15. कूर्मपुराण
- इसमें भगवान विष्णु जी के कूर्म अवतार का वर्णन है।
- इसमें 6000 श्लोक और 95 अध्याय है जो दो भागो में विभाजित है।
- इसमें पुराण के पांचों लक्षण मिलते है।
- इस पुराण में ईश्वर, व्यास गीता का वर्णन भी है।
16. मत्स्यपुराण
- इसमें विष्णु जी के मत्स्य अवतार का वर्णन है। जिसमे जल प्रलय का वर्णन किया गया है।
- इसमें कुल 291 अध्याय और 14000 श्लोक उपलब्ध है।
- इस पुराण में कलयुग के समस्त राजाओं का वर्णन है।
17. गरुडपुराण
- यह एक वैष्णव पुराण है।
- इसके प्रवक्ता स्वयं भगवान विष्णु जी है और श्रोता उनके वाहक गरुड़ जी है।
- इस पुराण में प्राणी के मृत्यु से उसके उद्धार तक की कथा का वर्णन है।
- इसमें कुल 263 अध्याय और 18000 श्लोक है।
- इसमें विष्णु जी के पूजा का भी वर्णन है।
18. ब्रह्माण्डपुराण
- इसमें कुल 109 अध्याय और 12000 श्लोक है।
- ब्रह्माण्ड पुराण का उपदेश प्रजापति ब्रह्मा जी को माना जाता है।
- इसमें चार पाद हैं— (क) प्रक्रिया, (ख) अनुषङ्ग, (ग) उपोद्घात तथा (घ) उपसंहार
पुराणों के रचयिता कौन है?
वेदव्यास जी ने पुराणों की रचना और पुनर्रचना की है.
सबसे प्राचीन पुराण
सबसे प्राचीन पुराण मार्कण्डयपुराण, इसे प्राचीनतम पुराण माना जाता है।
गरुड़ पुराण के रचयिता कौन है?
वेदव्यास जी ने पुराणों की रचना और पुनर्रचना की है। गरुड़ पुराण के रचयिता भी वेदव्यास जी है।
18 पुराणों में सबसे बड़ा पुराण कौन सा है?
18 पुराणों में सबसे बड़ा पुराण स्कन्दपुराण, यह पुराण शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय, सुब्रह्मण्य) के नाम पर है। यह सबसे बडा पुराण है। स्कन्दपुराण में कुल 81000 श्लोक हैं।
उपपुराण
अष्टादश पुराणों की तरह अष्टादश उपपुराण भी परम्परा से प्रचलित हैं एवं अनेकत्र उनका उल्लेख मिलता है। इन उप पुराणों की संख्या यद्यपि अठारह प्रचलित है, परन्तु इससे बहुत अधिक मात्रा में उपपुराण नामधारी ग्रन्थों का उल्लेख तथा अस्तित्व मिलता है। संग्रह भाव से एकत्र की गयी उपपुराणों की सूचियाँ ही करीब दो दर्जन हैं। डॉ॰ आर॰ सी॰ हाज़रा ने अपनी उपपुराण विषयक पुस्तक में विभिन्न ग्रन्थों से उपपुराणों की तेईस सूचियाँ प्रस्तुत की हैं। इन्हीं सूचियों को देवनागरी लिपि में डॉ॰ कपिलदेव त्रिपाठी ने ‘पाराशरोपपुराणम्’ की भूमिका में प्रस्तुत किया है। इन सूचियों में कुछ और जोड़कर डॉ॰ बृजेश कुमार शुक्ल ने ‘आद्युपपुराणम्’ की भूमिका में मूल श्लोक रूप में कुल २७ सूचियाँ प्रस्तुत की हैं।२८ वीं में मत्स्य पुराण के उद्धरण हैं। इन सभी सूचियों में से कुछ को छोड़कर शेष सभी के मूलाधार ग्रन्थों में बाकायदा कूर्म पुराण का नाम लेकर पूर्वोक्त सूची ही प्रस्तुत की गयी है। फिर भी कहीं-कहीं पाठभेद मिलने पर इन अध्येताओं ने उन्हें अलग पुराण के रूप में गिन लिया है। इस सन्दर्भ में यह तथ्य विशेष ध्यातव्य है कि उपपुराणों की सर्वाधिक विश्वसनीय एवं अपेक्षाकृत सर्वाधिक प्राचीन सूची अष्टादश मुख्य पुराणों में ही अनेकत्र मिलती है। यह तथ्य भी विशेष ध्यातव्य है कि मुख्य पुराणों में उपलब्ध ये सूचियाँ बिल्कुल सामान हैं। स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड में तथा कूर्म पुराण एवं गरुड़ पुराण में प्रायः बिल्कुल समान रूप में अष्टादश उपपुराणों की सूची दी गयी है, जो इस प्रकार है:
आदि पुराण (सनत्कुमार), नरसिंह पुराण (नृसिंह), नन्दिपुराण (कुमार), शिवधर्मपूर्व पुराण (तथा शिवधर्नमोत्तर), आश्चर्य पुराण (दुर्वासा), नारदीय पुराण (नारद), कापिल पुराण (कपिल), मानव पुराण (मनु), औशनस पुराण (उशना), ब्रह्माण्ड पुराण, वारुण पुराण (वरुण), कालिका, पुराण (सती), माहेश्वर पुराण (वासिष्ठलैङ्ग), साम्ब पुराण (आदित्य), सौर पुराण (सूर्य), पाराशर पुराण (पराशरोक्त), मारीच पुराण (भागवत), भार्गव पुराण (वासिष्ठ)
सूचना
इनमें से क्रमसं॰ आदि, नरसिंह, शिवधर्म, नारदीय, कपिल, कालिका, साम्ब, सौर, पाराशर एवं भार्गव उपपुराण प्रकाशित हो चुके हैं।
शेष अप्रकाशित उपपुराणों में क्रमसं॰ नन्दी, वरुण, वासिष्ठलैङ्ग (माहेश्वर) एवं मारीच उपपुराण की पाण्डुलिपि (मातृका) उपलब्ध हैं।
तथा क्रमसं॰ आश्चर्य (दौर्वासस्) एवं मानव उपपुराण की पांडुलिपि अभी तक अप्राप्य हैं।
क्रमसं॰ औशनस तथा ब्रह्माण्ड उपपुराण की कोइ जानकारि प्राप्त नहीं हुई है।
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