वराह पुराण
वराह पुराण महर्षि वेदव्यास रचित 18 पुराणों में से एक पुराण है, और 18 पुराणों में इस पुराण का स्थान 12 है। भगवान विष्णु ने भगवती पृथ्वी का उद्धार करने के लिए वराह अवतार लिया था। इसलिए यह पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा जाता है। इस पुराण में वराह अवतार की विस्तृत व्याख्या का वर्णन किया गया है।
वराह पुराण में भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा प्रमुख कथा है। इस पुराण में महर्षि वेदव्यासजी ने अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। भगवान नारायण की पूजा-अर्चना, भगवान शिव और पार्वती की कथाएँ, वराह क्षेत्रवर्ती आदित्य तीर्थों की महिमा का वर्णन, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति और माहात्म्य का विस्तृत वर्णन, ब्रह्मा, विष्णु और महेश यह त्रिदेवों की महिमा आदि का विस्तृत वर्णन मिलता है।
परिचय
महर्षि वेदव्यास रचित वराह पुराण पूर्व भाग और उत्तर भाग इस तरह 2 भागो में विभाजित और भगवान विष्णु का सूचक है। इस पुराण में 217 अध्याय और 24000 श्लोक है। वराह पुराण को सर्व प्रथम महर्षि वेद व्यासजी ने प्राचीन काल में लिपिबद्ध किया था।
इस पुराण में वराह अवतार की कथा के अतिरिक्त इस पुराण में भगवान श्री विष्णु की महिमा, हिमालय के घर पुत्री के रूप में पार्वती जन्म की कथा, शिव पार्वती के विवाह की कथा आदि कथाओ का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस पुराण में वराह-क्षेत्रवर्ती आदित्य-तीर्थों, व्रत, यज्ञ-यजन, श्राद्ध-तर्पण, दान और अनुष्ठान आदि का वर्णन कहा गया है। श्री कृष्ण की लीलाओ के प्रभाव से मथुरामण्डल और व्रज के सभी तीर्थों का रोचक वर्णन है।
पूर्व भाग
वराह पुराण में सबसे पहले भगवान विष्णु के अवतार वराह भगवान और भगवती पृथ्वी का शुभ संवाद, सतयुग के वृतांत में रैम्य का चरित्र वर्णन और श्राद्ध कल्प और दुर्जेय चरित्र का वर्णन मिलता है। फिर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो देवो का माहात्म्य, सत्यतपा व्रत कथा, अगत्स्य गीता और रूद्र गीता आदि का वर्णन किया गया है।
वराह पुराण के पूर्व भाग के अंत में ऋषि पुत्र के प्रसंग से यमलोक का वर्णन, कर्मविपाक एवं विष्णुव्रत का वर्णन और गोकर्ण पापनाशक माहात्मय का वर्णन कहा गया है। इस प्रकार वाराह पुराण का यह पूर्वभाग कहा गया है।
उत्तर भाग
वराह पुराण के इस भाग में पुलस्त्य ऋषि और पुरुराज के संवाद का विस्तृत वर्णन कहा गया है। अंत में सम्पूर्ण तीर्थो और धर्मो का वर्णन किया गया है।
वराह अवतार कथा
पुराणों के अनुसार हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने भगवती पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब भगवान ब्रह्मा के नाक से भगवान विष्णु ने वराह अवतार के रूप में प्रगट हुए। भगवान विष्णु के वरह अवतार को देखकर सभी देवी-देवताओ ने स्तुति की थी। सभी देवी-देवताओ के कहने पर भगवान वराह ने पृथ्वी की खोज करना शुरू किया था। अपनी थूथनी की सहायता से भगवान वराह को पृथ्वी का पता लगा और समुद्र के अंदर जाकर हिरण्याक्ष दैत्य का वध करके पृथ्वी को अपने दांतों पर रखकर बाहर ले आए।