वायु पुराण

वायु पुराण

वायु पुराण अठारह पुराणों में से एक पुराण है। वायु पुराण में 112 अध्याय और 11,000 श्लोक मिलते है। इस पुराण को स्वतन्त्र पुराण भी माना जाता है। वायु पुराण को विद्वानों द्वारा स्वतन्त्र पुराण न मानकर शिव पुराण का ही अंग मानते है, क्योकि इस पुराण में शिव उपासना की चर्चा अधिक है। वायु पुराण में खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, युग, तीर्थ, पितर- श्राद्ध, राजवंश, ऋषिवंश, आदि का सविस्तार का वर्णन मिलता है।

परिचय

वायु पुराण हिन्दू धर्म के 18 पुराणों में से एक है। पुराणों में इसका स्थान चौथा है। इस पुराण को शैव पुराण कहा जाता हे। इसमें वैष्णव मत पर विस्तार से भली- भाँति ज्ञान मिलता है। वायु पुराण में श्वेतकल्प के प्रसंगों में धर्मों का शिक्षा वायुदेव ने दि, इसलिए वायु पुराण कहते है। वायु पुराण में दो खंड 112 अध्याय और 11,000 श्लोक नियुक्त वर्णन है। वायु पुराण में खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, युग, तीर्थ, पितर- श्राद्ध, राजवंश, ऋषिवंश, आदि का सविस्तार का वर्णन विस्तार पूर्वक मिलता है। ब्रह्माण्ड की तरह वायु पुराण चार भागो में बाँटा गया है।

1. प्रक्रिया
2. अनुषंग
3. उपोद्घात और
4. उपसंहार।

वायु पुराण में 5 प्रकार के धर्म का वर्णन मिलता है। वासवी पित्तरों की मानसी कन्या की कथा हैं, यह श्राप के कारण मछ्ली के रूप में पैदा हुई। सूतजी ने यतियों के प्रायश्चित करने के नियम के बारे में कहा गया हैं, कि धर्म को जानने वालों ने कर्म, कृत और अकर्म, कृत दोनों ही पापो के लिए प्रायश्चित करने का कहा गया हैं।

वायु पुराण की संक्षिप्त जानकारी

वायु पुराण में वायु देव द्वारा श्वेतकल्प के प्रसंगों में धर्मों का निर्देश दिया है। इसलिए इस पुराण को वायु पुराण कहते है। इस पुराण दो भागो से युक्त है पूर्व और उत्तर इसमें सर्ग आदि का लक्षण विस्तार पूर्वक वर्णन कहा गया है। वायु पुराण में विभिन्न मंत्रों द्वारा राजाओं के वंश का वर्णन है, इस में सब मासों का माहात्मय का वर्णन बताकर माघ मास का अधिक फ़ल माना जाता है। इस में दान धर्म और राजधर्म का वर्णन विस्तार से मिलता है। इस में पृथ्वी और आकाश में घूमने वाले जिवो सम्बन्ध में निर्णय किया गया है। इसे वायु पुराण का पूर्व भाग कहते है। इसी तरह उत्तर भाग में नर्मदा के तीर्थो का वर्णन और शिव सहित का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है। भगवान सम्पूर्ण देवताओं के लिये जिस पर विजय पाना कठिन हो और सनातन है। नर्मदा के उत्तर तट पर निवास करने वाले वह भगवान रुद्र के अनुयायी होते है, और जिनका दक्षिण तट पर निवास है, वे भगवान विष्णु के अनुयायी होते है।

अध्यायों का वर्णन

वायु पुराण के शुरू ‘नारायणं नमस्कृत्य’ से होता है। इस पुराण के दूसरे श्लोक में महर्षि व्यास की प्रशस्ति का गायन किया गया है। और तीसरा श्लोक शिव भक्ति का वर्णन करता है। वायु पुराण के अध्याय 98 में भगवान विष्णु की प्रशंसा है, और भगवन दत्तात्रेय, महर्षि व्यास, कल्की अवतार भगवान विष्णु के अवतार कहे गये हैं। अध्याय 99 वायु पुराण का सबसे बड़ा अध्याय है। इसमें 464 श्लोक हैं और इसमें बहुत सी प्राचीन निश्चित और ऐतिहासिक कथाओ का वर्णन मिलता हैं।

वायु पुराण में श्राद्ध के 160 श्लोक, मोक्ष पर 35, तीर्थ के 22, दान के 7, ब्रह्मचारी पर 5 हैं। वायु पुराण ने गुप्त-वंश की ओर एक सन्देश चलता कर दिया है। इसे पाँच वर्षों का एक युग मालूम होता है। अध्याय 87 में पूर्वाचार्यों के नियम के आधार पर गीतालंकारों का वर्णन मिलता है।

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