गीता माहात्म्य

गीता माहात्म्य

भगवत गीता भारत के श्रेष्ठम ऐतिहासिक ग्रन्थ “महाभारत” का एक बहुत ही अभिन्न अंग है। जब कभी भी महाभारत की बात की जाती है, तो भगवत गीता का नाम हर व्यक्ति के होठों पर चमकता हुआ प्रतीत होता है। इसलिए इसका भाव इतना सरल हो जाता है,कि हर व्यक्ति चाहे उसने कभी भगवतगीता को पढ़ा हो या न पढ़ा हो, सर्वदा अपने जीवन में इसके मूल को जरूर ग्रहण करता है, और जीवन डगर पर अपनी मंजिल पाने को बहुत ही तनमयता के साथ निकल पड़ता है।

श्रीमद् भगवद्गीता के विषय में जानने योग्य विचार

गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम् ।
गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम्।।
गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं पदम् ।
गीता मे परमं गुह्यं गीता मे परमो गुरुः।।

भावार्थ: गीता मेरा हृदय है। गीता मेरा उत्तम सार है। गीता मेरा अति उग्र ज्ञान है। गीता मेरा अविनाशी ज्ञान है। गीता मेरा श्रेष्ठ निवासस्थान है। गीता मेरा परम पद है। गीता मेरा परम रहस्य है। गीता मेरा परम गुरु है।

भगवान श्री कृष्ण

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।

भावार्थ: जो अपने आप भगवान श्रीविष्णु के स्वयं मुखकमल से निकली हुई है वह गीता अच्छी तरह कण्ठस्थ करना चाहिए। अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या लाभ?

महर्षि व्यास

गेयं गीतानामसहस्रं ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्रम् ।
नेयं सज्जनसंगे चितं देयं दीनजनाय च वित्तम ।।

भावार्थ: गाने योग्य गीता तो श्रीगीता का और श्रीविष्णुसहस्रनाम का गान है। धरने योग्य तो श्री विष्णु भगवान का ध्यान है। चित्त तो सज्जनों के संग पिरोने योग्य है। और बिल तो दीन-दुखियों को देने योग्य है।

श्रीमद् आद्य शंकराचार्य

भगवद गीता में वेदों के काण्ड उजागर किये हैं इसलिये वह मूर्तिमान वेद स्वरुप हैं और दानशीलता में तो वह वेद से भी अधिक दानशील है। अगर कोई भी मनुष्य दूसरों को भगवद गीता देता है तो वह दुसरो के लिए मोक्षसुख का द्वार खोला है। इसलिए गीतारूपी माता का मनुष्यरूपी बच्चे से मिलन कराना यह तो सर्व सज्जनों का मुख्य धर्म है।

स्वामी विवेकानन्द कहते हे की भगवद गीता में मनुष्य को निम्न दशा में से उठा कर देवता के स्थान पर बिठाने की क्षमता है, क्योकि गीता में सत्य, ज्ञान, गम्भीर और सात्त्विक विचार भरे पड़े है। वह मनुष्य भाग्यशाली हैं जिन्हे इस संसार के अन्धकार से मार्गों में प्रकाश देने वाला गीतारूपी धर्मप्रदीप मिला है।

महामना मालवीय जी

एक समय मैंने अपना अंतिम समय नजदीक होता हुआ महसूस किया तब भगवद गीता मेरे लिए बहोत ही उचित साबित हुई थी। मैं जब भी मुसीबतों से घिर जाता हूँ तब मेँ भगवद गीता में से मुझे समाधान न मिला हो ऐसा कभी नहीं हुआ है।

महात्मा गाँधी

गीता ग्रंथ जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण है। भगवद गीता का विश्व की 578 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। हर भाषा में कई विद्वानों और भक्तों गंभीर मनन और विचार किये है। क्योकि गीता ग्रंथ में सभी देशो की जातियों और पंथों के सभी मनुष्य के कल्याणकारी सामग्री भरी हुई है। सभी दिव्य गुणों का विकास करने वाला भगवद गीता ग्रन्थ विश्व में अद्वितिय है।

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