हवन की महिमा
हवन / यज्ञ/ अग्निहोत्र मनुष्यों के साथ सदा से चला आया है। वैदिक धर्म में सर्वोच्च स्थान पर विराजमान यह हवन आज प्रायः एक आम आदमी से दूर है।
दुर्भाग्य से इसे केवल कुछ वर्ग, जाति और धर्म तक सीमित कर दिया गया है। कोई यज्ञ पर प्रश्न कर रहा है तो कोई मजाक। इस लेख का उद्देश्य जनमानस को यह याद दिलाना है कि हवन क्यों इतना पवित्र है, क्यों यज्ञ करना न सिर्फ हर इंसान का कर्त्तव्य है।
हवन: हमारी आस्था
धर्म में सर्वोपरि पूजनीय वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञ/हवन की क्या महिमा है, वेदों के अनेक मन्त्र यज्ञ करने का मनुष्यों को आदेश देते हैं।
अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्. होतारं रत्नधातमम् [ ऋग्वेद १/१/१/]
समिधाग्निं दुवस्यत घृतैः बोधयतातिथिं. आस्मिन् हव्या जुहोत। [यजुर्वेद 3/1]
अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुव। [यजुर्वेद 22/17]
इन मन्त्रों का निचोड़ यह है कि ईश्वर मनुष्यों को आदेश करता है कि हवन/यज्ञ संसार का सर्वोत्तम कर्म है, पवित्र कर्म है जिसके करने से सुख ही सुख बरसता ह।
यही नहीं, भगवान श्रीराम को रामायण में स्थान स्थान पर ‘यज्ञ करने वाला’ कहा गया है। महाभारत में श्रीकृष्ण सब कुछ छोड़ सकते हैं पर हवन नहीं छोड़ सकते। हस्तिनापुर जाने के लिए अपने रथ पर निकल पड़ते हैं, रास्ते में शाम होती है तो रथ रोक कर हवन करते है।
अगले दिन कौरवों की राजसभा में हुंकार भरने से पहले अपनी कुटीया में हवन करते हैं। अभिमन्यु के बलिदान जैसी भीषण घटना होने पर भी सबको साथ लेकर पहले यज्ञ करते हैं।
श्रीकृष्ण के जीवन का एक एक क्षण जैसे आने वाले युगों को यह सन्देश दे रहा था कि चाहे कुछ हो जाए, यज्ञ करना कभी न छोड़ना। जिस कर्म को भगवान स्वयं श्रेष्ठतम कर्म कहकर करने का आदेश दें, वो कर्म कर्म नहीं धर्म है. उसका न करना अधर्म है।
हवन: हमारा भाग्य
लोग अशुभ से डरते हैं। किसी पर साया है तो किसी पर भूत प्रेत। किसी पर किसी ने जादू कर दिया है तो किसी के ग्रह खराब हैं। किसी का भाग्य साथ नहीं देता तो कोई असफलताओं का मारा है। क्यों? क्योंकि जीवन में संकल्प नहीं है।
हवन कुंड के सामने बैठ कर उसकी अग्नि में आहुति डालते हुए इदं न मम कहकर एक बार अपने सब अच्छे बुरे कर्मों को उस ईश्वर को समर्पित कर दो। अपनी जीत हार उस ईश्वर के पल्ले बाँध दो। एक बार पवित्र अग्नि के सामने अपने संकल्प की घोषणा कर दो।
एक बार कह दो कि अब हार भी उसकी और जीत भी उसकी, हर सुबह हवन की अग्नि में इदं न मम कहकर अपने काम शुरू करना। जिस घर में हवन की अग्नि हर दिन प्रज्ज्वलित होती है वहाँ अशुभ और हार के अँधेरे कभी नहीं टिकते। जिस घर में पवित्र अग्नि विराजमान हो उस घर में विनाश/अनिष्ट कभी नहीं हो सकता।
हवन: हमारा स्वास्थ्य
आस्था और भक्ति के प्रतीक हवन को करने के विचार मन में आते ही आत्मा में उमड़ने वाला ईश्वर प्रेम वैसा ही है जैसे एक माँ के लिए उसके गर्भस्थ अजन्मे बच्चे के प्रति भावना।
जिसको कभी देखा न सुना, तो भी उसके साथ एक कभी न टूटने वाला रिश्ता बन गया है, यही सोच सोच कर मानसिक आनंद की जो अवस्था एक माँ की होती है वही अवस्था एक भक्त की होती है।
इस हवन के माध्यम से वह अपने अजन्मे अदृश्य ईश्वर के प्रति भाव पैदा करता है और उस अवस्था में मानसिक आनंद के चरम को पहुँचता है। इस चरम आनंद के फलस्वरूप मन विकार मुक्त हो जाता है।
मस्तिष्क और शरीर में श्रेष्ठ रसों (होर्मोंस) का स्राव होता है जो पुराने रोगों का निदान करता है और नए रोगों को आने नहीं देता। हवन करने वाले के मानसिक रोग दस पांच दिनों से ज्यादा नहीं टिक सकते।
हवन में डाली जाने वाली सामग्री (ध्यान रहे, यह सामग्री आयुर्वेद के अनुसार औषधि आदि गुणों से युक्त जड़ी बूटियों से बनी हो) अग्नि में पड़कर सर्वत्र व्याप्त हो जाती है. घर के हर कोने में फ़ैल कर रोग के कीटाणुओं का विनाश करती है।
वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि हवन से निकलने वाला धुआँ हवा से फैलने वाली बीमारियों के कारक इन्फेक्शन करने वाले बैक्टीरिया (विषाणु) को नष्ट कर देता है। सौ से भी ज्यादा आम और खास रोग यज्ञ थैरेपी से ठीक होते हैं।
सबसे बढ़कर हवन से शरीर, मन, वातावरण, परिस्थितियों और भाग्य पर अद्भुत प्रभाव होता है. घर परिवार, बच्चे बड़े सबके उत्तम स्वास्थ्य, आरोग्य और भाग्य के लिए यज्ञ से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। दिन अगर यज्ञ से शुरू हो तो कुछ अशुभ हो नहीं सकता, कोई रोग नहीं हो सकता।
हवन: हमारी मुक्ति
हवन कुंड की आग, उसमें स्वाहा होती आहुतियाँ और आहुति से और प्रचंड होने वाली अग्नि. जीवन का तेज, उसमें डाली गयीं शुभ कर्मों की आहुतियाँ और उनसे और अधिक चमकता जीवन ? क्या समानता है ? हवन क्या है?
अपने जीवन को उजले कर्मों से और चमकाने का संकल्प! अपने सब पाप, छल, विफलता, रोग, झूठ, दुर्भाग्य आदि को इस दिव्य अग्नि में जला डालने का संकल्प। हर नए दिन में एक नयी उड़ान भरने का संकल्प, हर नयी रात में नए सपने देखने का संकल्प।
उस ईश्वर रूपी अग्नि में खुद को आहुति बनाके उसका हो जाने का संकल्प, उस दिव्य लौ में अपनी लौ लगाने का संकल्प और इस संसार के दुखों से छूट कर अग्नि के समान ऊपर उठ मुक्त होने का संकल्प! हवन हमारी मुक्ति का मार्ग है, ईश्वर से मिलाने का मार्ग है।