सनातन धर्म में ॐ क्या है? क्या है ॐ ओम का अर्थ और ओम का महत्व?
सनातन धर्म — जिसे आधुनिक समय में हिंदू धर्म कहा जाता है — दुनिया के सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक धर्मों में से एक है। इस धर्म की आत्मा में बसी है एक रहस्यमय, शक्तिशाली और दिव्य ध्वनि — ॐ (ओम)।
ॐ केवल एक ध्वनि नहीं है, यह संपूर्ण ब्रह्मांड की चेतना और कंपन का प्रतीक है। इसे वेदों, उपनिषदों, ध्यान, योग और मंत्रों में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। आइए विस्तार से जानते हैं कि ॐ का क्या अर्थ है, इसका इतिहास क्या है, और क्यों यह सनातन धर्म में इतना महत्वपूर्ण है।
ॐ (ओम) का इतिहास
ॐ का सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद और उपनिषदों में मिलता है। मांडूक्य उपनिषद, जो केवल ॐ के विश्लेषण को समर्पित है, कहती है:
"ॐ इत्येतदक्षरमिदं सर्वं, तस्योपव्याख्यानं भूतम् भवद्भविष्यदिति सर्वम् ओंकार एव" — माण्डूक्य उपनिषद्, मंत्र 1
इसका अर्थ है — ॐ ही सम्पूर्ण सृष्टि का सार है। यह भूत, भविष्य और वर्तमान — सभी कालों को समेटे हुए है।
ॐ का अर्थ — ध्वनि में ब्रह्मांड का रहस्य
ॐ को तीन अक्षरों से मिलकर बना माना जाता है:
- अ (A) — जाग्रत अवस्था (संसार में चेतन रूप)
- उ (U) — स्वप्न अवस्था (आंतरिक विचार व कल्पना)
- म (M) — सुषुप्ति अवस्था (गहरी नींद या शुद्ध अस्तित्व)
इन तीनों के बाद आती है मौन ध्वनि (Silence) — जिसे तुर्य अवस्था कहा जाता है। यह अवस्था परम आत्मिक ज्ञान और ब्रह्म से एकाकार की स्थिति है।
इस प्रकार ॐ न केवल एक शब्द है, बल्कि यह जीवन के सभी आयामों और आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है।
ध्यान और योग में ॐ का महत्व
योग और ध्यान में ॐ का उच्चारण एक शक्तिशाली साधना मानी जाती है। इसके लाभ:
- मन को शांत करता है
- चित्त की एकाग्रता बढ़ाता है
- नकारात्मक ऊर्जा को हटाता है
- ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने में सहायता करता है
विज्ञान की दृष्टि से भी यह सिद्ध हुआ है कि ॐ के उच्चारण से मस्तिष्क में पॉजिटिव वेव्स उत्पन्न होती हैं, जिससे तनाव और चिंता कम होती है।
ॐ और देवताओं का संबंध
ॐ सभी प्रमुख देवी-देवताओं से जुड़ा हुआ है। यह प्रत्येक मंत्र की शुरुआत में आता है:
- ॐ नमः शिवाय — भगवान शिव के लिए
- ॐ नमो नारायणाय — भगवान विष्णु के लिए
- ॐ गं गणपतये नमः — भगवान गणेश के लिए
- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं — माँ लक्ष्मी, दुर्गा आदि के बीज मंत्र
भगवद गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:
"वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव... प्रणवः सर्ववेदेषु" — भगवद गीता, अध्याय 7, श्लोक 8
अर्थात: मैं ही सभी वेदों में ओंकार हूँ।
ॐ का प्रतीक (Symbolism)
ॐ का चिन्ह भी गहरा अर्थ रखता है:
- तीन वक्र रेखाएं (3 curves): जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्थाएं
- अर्धचंद्र और बिंदु: माया और तुरीय अवस्था
- बिंदु के ऊपर अर्धचंद्र: ब्रह्म से मिलने की प्रक्रिया
यह चिन्ह दर्शाता है कि जब साधक माया (अज्ञान) को पार कर लेता है, तब वह ब्रह्म (तुरीय) को प्राप्त करता है।
जीवन और संस्कारों में ॐ
ॐ का उपयोग जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों, पूजा, मंत्रोच्चार और यज्ञ में किया जाता है:
- पूजा-पाठ की शुरुआत “ॐ” से होती है
- मंत्रों और श्लोकों में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है
- धार्मिक ग्रंथों के पहले पृष्ठ पर ॐ लिखा जाता है
- मंदिरों में ॐ का चिन्ह लगाया जाता है
वैज्ञानिक और कंपन (Vibration) दृष्टिकोण
वैज्ञानिक शोधों के अनुसार ॐ का उच्चारण:
- मन को तनावमुक्त करता है
- शरीर की कोशिकाओं को शांत करता है
- हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर को संतुलित करता है
- सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है
ॐ का कंपन 432 Hz की आवृत्ति पर होता है, जो ब्रह्मांड की प्राकृतिक आवृत्ति मानी जाती है।
ॐ का प्रभाव हिंदू धर्म से परे
ॐ केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे अन्य धर्मों में भी अपनाया गया है:
- बौद्ध धर्म: “ॐ मणि पद्मे हूं” प्रसिद्ध मंत्र है
- जैन धर्म: ॐ से पंच परमेष्ठी की स्तुति की जाती है
- सिख धर्म: “ੴ (एक ओंकार)” यानी ईश्वर एक है
यह बताता है कि ॐ एक वैश्विक और सार्वभौमिक चेतना का प्रतीक बन चुका है।
निष्कर्ष — ॐ क्यों है सनातन धर्म की आत्मा?
ॐ केवल एक ध्वनि या प्रतीक नहीं, बल्कि यह संपूर्ण अस्तित्व का सार है। यह परमात्मा से जुड़ने का माध्यम, योग साधना का आधार और ध्यान का बीज है।
जब कोई भक्त श्रद्धा से ॐ का उच्चारण करता है, तो वह न केवल अपने भीतर की चेतना को जाग्रत करता है, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा से भी जुड़ता है।
“ॐ ही आत्मा का धनुष है, आत्मा उसका तीर है और ब्रह्म उसका लक्ष्य।” — स्वामी शिवानंद
बाहरी लिंक (External References):
Pingback:What is Om in Sanatan Dharma? Meaning and Spiritual Significance